अर्चन पूजन हवन वैदिक अनुष्ठानों, हिंदू पूजा समारोहों और अन्य पूजा सेवाओं के लिए सबसे विश्वसनीय है। पूजा-पाठ हिंदू धर्म और संस्कृति के धार्मिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
हवन सभी शत्रुओं को दूर करता है और दुर्घटनाओं से बचाता है, मनुष्य की इच्छाएं असंख्य हैं और उनकी प्रकृति अलग–अलग होती है। होम नकारात्मकता को दूर रखेगा शुभ लाएगा। हवन एक शक्तिशाली मIध्यम है जो आपके रास्ते की सभी बाधाओं और रुकावटों को दूर करता है और आपको अपने मिशन में सफल बनाता है स्वास्थ्य, धन, शांति और समृद्धि लाता है।। यह आपकी चिंताओं को दूर कर आपको खुशियां प्रदान करता है। हवन के शक्तिशाली मंत्र आपके सभी आपको सभी मोर्चों पर सुरक्षा प्रदान करते हैं।
हम पूरे वर्ष ऑनलाइन पूजाओं की एक विस्तृत श्रृंखला पेश करते हैं। ये पूजाएँ प्रामाणिक सामग्रियों का उपयोग करके, हमारी धार्मिक पुस्तकों में बताए गए सभी अनुष्ठानों के साथ की जाती हैं।
मंत्रों का प्रयोग मानव ने अपने कल्याण के साथ-साथ दैनिक जीवन की संपूर्ण समस्याओं के समाधान हेतु यथासमय किया है और उसमें सफलता भी पाई है, परंतु आज के भौतिकवादी युग में यह विधा मात्र कुछ ही व्यक्तियों के प्रयोग की वस्तु बनकर रह गई है।
मंत्रों में छुपी अलौकिक शक्ति का प्रयोग कर जीवन को सफल एवं सार्थक बनाया जा सकता है। सबसे पहले प्रश्न यह उठता है कि ‘मंत्र’ क्या है, इसे कैसे परिभाषित किया जा सकता है। इस संदर्भ में यह कहना उचित होगा कि मंत्र का वास्तविक अर्थ असीमित है। किसी देवी-देवता को प्रसन्न करने के लिए प्रयुक्त शब्द समूह मंत्र कहलाता है।
जो शब्द जिस देवता या शक्ति को प्रकट करता है उसे उस देवता या शक्ति का मंत्र कहते हैं। मंत्र एक ऐसी गुप्त ऊर्जा है, जिसे हम जागृत कर इस अखिल ब्रह्मांड में पहले से ही उपस्थित इसी प्रकार की ऊर्जा से एकात्म कर उस ऊर्जा के लिए देवता (शक्ति) से सीधा साक्षात्कार कर सकते हैं।
ऊर्जा अविनाशिता के नियमानुसार ऊर्जा कभी भी नष्ट नहीं होती है, वरन् एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती रहती है। अतः जब हम मंत्रों का उच्चारण करते हैं तो उससे उत्पन्न ध्वनि एक ऊर्जा के रूप में ब्रह्मांड में प्रेषित होकर जब उसी प्रकार की ऊर्जा से संयोग करती है तब हमें उस ऊर्जा में छुपी शक्ति का आभास होने लगता है। ज्योतिषीय संदर्भ में यह निर्विवाद सत्य है कि इस धरा पर रहने वाले सभी प्राणियों पर ग्रहों का अवश्य प्रभाव पड़ता है।
चंद्रमा मन का कारक ग्रह है और यह पृथ्वी के सबसे नजदीक होने के कारण खगोल में अपनी स्थिति के अनुसार मानव मन को अत्यधिक प्रभावित करता है। अतः इसके अनुसार जो मन का त्राण (दुःख) हरे उसे मंत्र कहते हैं। मंत्रों में प्रयुक्त स्वर, व्यंजन, नाद व बिंदु देवताओं या शक्ति के विभिन्न रूप एवं गुणों को प्रदर्शित करते हैं। मंत्राक्षरों, नाद, बिंदुओं में दैवीय शक्ति छुपी रहती है।
मंत्र उच्चारण से ध्वनि उत्पन्न होती है, उत्पन्न ध्वनि का मंत्र के साथ विशेष प्रभाव होता है। जिस प्रकार किसी व्यक्ति, स्थान, वस्तु के ज्ञानर्थ कुछ संकेत प्रयुक्त किए जाते हैं, ठीक उसी प्रकार मंत्रों से संबंधित देवी-देवताओं को संकेत द्वारा संबंधित किया जाता है, इसे बीज कहते हैं। विभिन्न बीज मंत्र इस प्रकार हैं :
ॐ👉 परमपिता परमेश्वर की शक्ति का प्रतीक है।
ह्रीं👉 माया बीज,
श्रीं👉 लक्ष्मी बीज,
क्रीं👉 काली बीज,
ऐं👉 सरस्वती बीज,
क्लीं👉 कृष्ण बीज।
मंत्रों में देवी-देवताओं के नाम भी संकेत मात्र से दर्शाए जाते हैं, जैसे राम के लिए ‘रां’, हनुमानजी के लिए ‘हं’, गणेशजी के लिए ‘गं’, दुर्गाजी के लिए ‘दुं’ का प्रयोग किया जाता है। इन बीजाक्षरों में जो अनुस्वार (ं) या अनुनासिक (जं) संकेत लगाए जाते हैं, उन्हें ‘नाद’ कहते हैं। नाद द्वारा देवी-देवताओं की अप्रकट शक्ति को प्रकट किया जाता है।
पुर्लिंग जिन मंत्रों के अंत में हूं या फट लगा होता है।
स्त्रीलिंग जिन मंत्रों के अंत में ‘स्वाहा’ का प्रयोग होता है।
नपुंसक लिंग जिन मंत्रों के अंत में ‘नमः’ प्रयुक्त होता है।
अतः आवश्यकतानुसार मंत्रों को चुनकर उनमें स्थित अक्षुण्ण ऊर्जा की तीव्र विस्फोटक एवं प्रभावकारी शक्ति को प्राप्त किया जा सकता है। मंत्र, साधक व ईश्वर को मिलाने में मध्यस्थ का कार्य करता है। मंत्र की साधना करने से पूर्व मंत्र पर पूर्ण श्रद्धा, भाव, विश्वास होना आवश्यक है तथा मंत्र का सही उच्चारण अति आवश्यक है। मंत्र लय, नादयोग के अंतर्गत आता है।
मंत्रों के प्रयोग से आर्थिक, सामाजिक, दैहिक, दैनिक, भौतिक तापों से उत्पन्न व्याधियों से छुटकारा पाया जा सकता है। रोग निवारण में मंत्र का प्रयोग रामबाण औषधि का कार्य करता है। मानव शरीर में 108 जैविकीय केंद्र (साइकिक सेंटर) होते हैं जिसके कारण मस्तिष्क से 108 तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ) उत्सर्जित करता है।
शायद इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने मंत्रों की साधना के लिए 108 मनकों की माला तथा मंत्रों के जाप की आकृति निश्चित की है। मंत्रों के बीज मंत्र उच्चारण की 125 विधियाँ हैं। मंत्रोच्चारण से या जाप करने से शरीर के 6 प्रमुख जैविकीय ऊर्जा केंद्रों से 6250 की संख्या में विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा तरंगें उत्सर्जित होती हैं, जो इस प्रकार हैं :
मंत्र वह ध्वनि है जो अक्षरों एवं शब्दों के समूह से बनती है। यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड एक तरंगात्मक ऊर्जा से व्याप्त है जिसके दो प्रकार हैं – नाद (शब्द) एवं प्रकाश।
मंत्र का अर्थ होता है, जो मन को रुझा ले, जो मन को रंग ले, जो मन के लिए सूत्र बन जाए। तो कोई भी चीज मंत्र हो सकती है।
लगातार मंत्र का जाप करने से भटकता हुआ मन मंत्र पर केंद्रित हो जाता है और इसके प्रभाव से सारे बिगड़े काम बनने लगते हैं. ज्योतिष शास्त्र में कई परेशानियों को दूर करने के लिए मंत्रों के जाप को महत्वपूर्ण बताया गया है. यही कारण है कि सुख-समृद्धि, सकारात्मकता, धन लाभ और सफलता के लिए मंत्रों का जाप लाभकारी सिद्ध होता है.
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। इस प्रकार मन्त्र का उच्चारण करते हुए माला की जाय एवं भावना की जाय कि हम निरन्तर पवित्र हो रहे हैं।
इसमें 10 मण्डल हैं, जिनमें 1028 सूक्त है। इन सूक्तों में शौनक की अनुक्रमणी के अनुसार 10,627 मंत्र है।
हिंदू धर्म में ग्रंथों की एक विस्तृत श्रृंखला है, जो विभिन्न विषयों को कवर करती है। इनमें से कुछ ग्रंथों को हिंदू धर्म के चार प्रमुख स्रोतों में शामिल किया जाता है, जिन्हें “वेद” कहा जाता है। वेद चार हैं: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद। उपनिषद: उपनिषद वेदांत दर्शन के मूल ग्रंथ हैं।
हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भगवदगीता माना गया है।
रामायण में प्रतिपादित धर्म का आशय व्यक्ति के लिए निर्धारित कर्त्तव्य पालन से है । तत्कालीन समाज में वर्णक्रमानुसार जिस वर्ण का जो कर्म निर्धारित किया गया था वह उसी के अनुरूप आचरण करता था । यही उसका कर्तव्य था और वही उसका धर्म भी था ।
उपनिषद् हिन्दू धर्म के महत्त्वपूर्ण श्रुति धर्मग्रन्थ हैं। ये वैदिक वाङ्मय के अभिन्न भाग हैं। ये संस्कृत में लिखे गये हैं। इनकी संख्या लगभग १०८ है, किन्तु मुख्य उपनिषद १३ हैं।
अर्चन पूजन हवन हर धर्म में आसमानी शक्तियों को मंत्र के माध्यम से आशीर्वाद प्राप्त करता है और ये अनंत काल से चल रहा है
ब्रह्माण्ड सम्पूर्ण समय और अन्तरिक्ष और उसकी अन्तर्वस्तु को कहते हैं। ब्रह्माण्ड में सभी ग्रह, तारे, गैलेक्सियाँ, खगोलीय पिण्ड, गैलेक्सियों के बीच के अन्तरिक्ष की अन्तर्वस्तु, अपरमाणविक कण, और सारा पदार्थ और सारी ऊर्जा सम्मिलित है। जबकि पूरे ब्रह्माण्ड का स्थानिक आकार अज्ञात है यूनिवर्सम" संस्कृत शब्द "ब्रह्माण्ड" से लिया गया है, जिसका उपयोग रोमन राजनेता सिसेरो और बाद के रोमन लेखकों ने दुनिया और ब्रह्माण्ड को सन्दर्भित करने के लिए किया था जैसा कि वे जानते थे। इसमें पृथ्वी और उसमें रहने वाले सभी जीवित प्राणी, साथ ही चन्द्रमा, सूर्य, तत्कालीन ज्ञात ग्रह (बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि) और तारे शामिल थे। सरल भाषा मैं कहे तो यह करोड़ो तारे आकाशगंगा गैस ग्रह नक्षत्र मिलकर ब्रह्माण्ड का निर्माण करते है, जिसका निर्माण काल १३.७८७ अरब वर्ष पहले शुरू हुआ, और ये प्रकाश के गति से बढ़ ही रहा है
राम मंदिर का निर्माण राम के जन्मस्थान पर उनके जन्म की स्मृति में किया गया है इसलिए, मंदिर के पीठासीन देवता को विष्णु के अवतार राम का शिशु रूप माना जाता है। उस शिशु रूप में राम को राम लला (अर्थात्) कहा जाता था। राम एक हिंदू देवता हैं जिन्हें हिंदू विष्णु का पूर्णावतार ( शाब्दिक अर्थ ' विष्णु का पूर्ण अवतार ') मानते हैं । और कुछ हिंदू राम को परब्रह्म ( शाब्दिक रूप से 'परम ब्रह्म ') के रूप में देखते हैं। हिंदू संस्कृति और धर्म में राम का बहुत महत्व है । राम अवतार में, विष्णु को अपनी किसी भी दिव्य शक्ति का प्रदर्शन नहीं करना है और एक इंसान के रूप में जीवन जीना नहीं है। इसलिए, नारद द्वारा रामायण के लेखक वाल्मिकी को बताए गए राम के सोलह गुणों के आधार पर , आस्तिक हिंदू राम को पुरूषोत्तम ( शाब्दिक रूप से 'आदर्श पुरुष'), विग्रहवान धर्म : ( शाब्दिक रूप से ' धर्म का अवतार ') के रूप में देखते हैं। ) और आदि पुरुष ( शाब्दिक अर्थ ' वेदों में वर्णित पुरुष , यानी भगवान का सर्वोच्च व्यक्तित्व')। प्राचीन भारतीय इतिहास , रामायण के अनुसार, राम का जन्म अयोध्या में हुआ था । इस प्रकार अयोध्या हिंदुओं के सात सबसे पवित्र
हनुमानगढ़ी मंदिर की स्थापना कब हुई कोई नहीं जानता है अयोध्या की सरयू नदी के दाहिने तट पर ऊंचे टीले पर स्थित है हनुमानगढ़ी मंदिर. मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तजनों को 76 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. कहते हैं यहां बजरंगबली के दर्शन किए बिना रामलला की पूजा अधूरी मानी जाती है.
किसी भी तरह के कष्ट के निवारण हेतु कष्ट निवारण पूजा करवाई जाती है। परिवार के किसी सदस्य को कोई लंबा रोग है या कोई हमेशा रोगग्रस्त रहता है, कर्ज से परेशान हैं या दरिद्रता से मुक्ति पाना चाहते हैं, संतान प्राप्ति में आ रही बाधाओं और जीवन के सभी दुखों को कष्ट निवारण पूजन द्वारा दूर किया जा सकता है। कष्ट निवारण पूजन से आपके घर और आपके आसपास की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है और यह पूजा आपके जीवन के अनेक पहलुओं पर प्रभाव डालता है। इस पूजा के सकारात्मक प्रभाव से आपके जीवन के सारे कष्ट दूर हो सकते हैं।
देवी दुर्गा दुखों का नाश करने वाली देवी है।
इसलिए जब उनकी पूजा आस्था, श्रद्धा से की जाती है तो उनकी नवों शक्तियां जागृत होकर नौ ग्रहों को नियंत्रित कर देती हैं। फलस्वरूप प्राणियों का कोई अनिष्ट नहीं हो पाता तथा जन्म पत्रिका दोष निवारण हो जाता है!
सबसे पहले रोज की पूजा करने के बाद अग्नि स्थापना करें फिर आम की चौकोर लकड़ी लगाकर, कपूर रखकर जला दें। उसके बाद इन मंत्रों से आहुति देते हुए हवन शुरू करें। ॐ आग्नेय नम: स्वाहा (ॐ अग्निदेव ताम्योनम: स्वाहा)। ॐ गणेशाय नम: स्वाहा।
नवग्रह हवन पूजा (Havan Puja) के लिए पहले ग्रहों का आह्वान करके उनके उरके उनकी स्थापरा की जाती है।. बाएँ हाथ में अक्षत लेकर "ॐ आ कृष्णेन रमसा वर्तममो निवेहयमॾनूू मर्त्यं ञ। हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्"
सावन मास में भगवान शिव का दूध से अभिषेक करने से सौभाग्य और शांति की प्राप्ति होती है। शिवलिंग का दही से अभिषेक करने पर काम में आ रही बाधाएं दूर होती हैं और हर प्रकार के कार्य सिद्ध होते हैं। सावन में शिवलिंग का गंगाजल से अभिषेक करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है
अमवाया और पूर्णिमा को हवन करना बहुत ही फायदेमंद है ।हम सबको हवन करना ही चाहिए इससे करने से देवता, पितरों की तृप्ति के साथ साथ आत्मिक शांति भी मिलती है ।इससे करने से हमारा समाज भी सही मार्ग पे चलने की कोशिश करता है ।हवन पूजन के करने से अग्नि जल वायु आकाश पृथ्वी आदि पांच तत्वों की संतुष्टि होती है ।।
हवन के बाद आरती से समापन होता है. पूजा स्थान पर या घर के आंगन में हवन की व्यवस्था करें. एक वेदी बनाकर वहां पर हवन कुंड रखें. उसके बाद सभी हवन सामग्री जैसे काला तिल, चावल, जौ, गाय का घी, लोभान, गुग्गल, कपूर, पलाश और गूलर की छाल, मुलैठी की जड़, अश्वगंधा, ब्राह्मी आदि को मिलाकर रख लें.
माँ कामाख्या की पूजा योनि या स्त्री योनि/वल्वा के रूप में की जाती है। कामाख्या मां न केवल बुद्धिमान, बहादुर और सृजन का स्रोत हैं, बल्कि वह अपनी कामुकता, प्रजनन क्षमता और संबंधित शारीरिक कार्यों के भी बहुत करीब हैं
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, घर में शेषनाग के ऊपर नाचते हुए श्रीकृष्ण की तस्वीर रखें और नियमित पूजा करें. पूजन के दौरान 'ओम् नमो भगवते वासुदेवाय नमः' मंत्र का 108 बार जाप करें. माना जाता है कि राहु-केतु की शांति के लिए यह उपाय भी प्रभावी साबित होता है.
जन्मदिन पूजा या जन्मदिन पूजा जन्म के दिन को चिह्नित करने और माता-पिता, इष्ट देव और कुल देव से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मनाई जाती है। यह वह दिन है जब लोग पैदा होते हैं, जिसका समय राशि और नक्षत्र के आधार पर भविष्य तय करता है।।
हिन्दू धर्म की समृद्ध संस्कृति में विभिन्न अनुष्ठान और विधियाँ हैं, जिन्हें पीढ़ी से पीढ़ी तक पारंपरिक रूप से अपनाया गया है। इनमें से एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है । इस पवित्र अनुष्ठान में विशेष तत्वों की पूजा और अर्पण की जाती है, जो हमारी पूजा-अर्चना को महान बनाती है। दस महाविधा पूजन सामग्री का उपयोग अगर वैदिक- विधि से किया जाय तो स्वास्थ्य, धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है | दस महाविधा माँ दुर्गा के उग्र शक्ति के दस रूप हैं, जो समस्त सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति और संहार का कारण हैं। ये रूप मुख्यतय: काली, तारा, त्रिपुरसुंदरी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कामला है |
शुभ दिन : हनुमान यज्ञ के लिए मंगलवार का दिन बहुत शुभ माना जाता है। इस यज्ञ को एक ब्राह्मण की सहायता से विधिवत पूरा ही करवाया जा सकता है। आवश्यक वस्तुएं : लाल फूल, रोली, कलावा, हवन कुंड, हवन की लकड़ियां, गंगाजल, एक जल का लोटा, पंचामृत, लाल लंगोट, 5 प्रकार के फल। ॐ हं हनुमते नम:। ' - बजरंगबली का ये चमत्कारी मंत्र वाणी से संबंधित कार्य में सफलता पाने के लिए किया जाता है. जैसे वाद-विवाद, न्यायालय आदि के काम में कोई बाधा आ रही है तो इस मंत्र का मंगलवार को विधि पूर्वक जाप करें. 'ॐ नमो भगवते हनुमते नम:
हमारी सनातन संस्कृति में सुबह उठते ही धरती को दाएं हाथ से स्पर्श कर हथेली को माथे से लगाने की परंपरा है। हमारे ऋषि-मुनियों ने इस रीति को विधान बनाकर धार्मिक रूप इसलिए दिया ताकि हम धरती माता के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट कर सकें, उन्हें सम्मान दे सकें। हमारा शरीर भी भूमि तत्वों से बना है। धरती हमारे लिए मातृ स्वरूपा है।
काल भैरव जयंती के दिन प्रातः स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें. काल भैरव भगवान का पूजन रात्रि में करने का विधान है. इस दिन शाम को किसी मंदिर में जाएं और भगवान भैरव की प्रतिमा के सामने चौमुखा दीपक जलाएं. इसके बाद फूल, इमरती, जलेबी, उड़द, पान, नारियल आदि चीजें अर्पित करें
पूजन भगवान को प्रसन्न करने हेतु हमारे द्वारा उनका अभिवादन होता है। पूजा दैनिक जीवन का शांतिपूर्ण तथा महत्वपूर्ण कार्य है।
अर्चना मंदिर के पुजारियों द्वारा की जाने वाली एक विशेष, व्यक्तिगत, संक्षिप्त पूजा है जिसमें व्यक्तिगत मार्गदर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भक्त के नाम, जन्म नक्षत्र और पारिवारिक वंश का पाठ किया जाता है। पुजारी उस देवता के 108 नामों का जाप करते हैं जिनके सन्निधि (मंदिर) के लिए अर्चना की जा रही है।
भक्ति के नौ प्रकार है लेकिन पूजन के दो प्रकार है पहला है सात्विक और दूसरा है तामसिक। – प्रतिदिन शक्ति के अनुसार अपने घर से गंध, पुष्प, अक्षत आदि ले जाकर अर्हंत की पूजा करना, जिनभवन, जिनप्रतिमा का निर्माण कराना, मुनियों की पूजा करना आदि।
हर पूजा के वक्त जरूर पढ़ना चाहिए यह मंत्र – ‘कर्पूरब जो आवगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्। सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।। ‘ इस मंत्र का जाप करने से कई गुणा ज्यादा लाभ मिलता है साथ ही इससे धन संबंधित परेशानी दूर हो जाती है।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।। ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु। ॐ पृथ्वि!
स्वस्ति मंत्र का पाठ करने की क्रिया ‘स्वस्तिवाचन’ कहलाती है। जगत के कल्याण के लिए, परिवार के कल्याण के लिए स्वयं के कल्याण के लिए, शुभ वचन कहना ही स्वस्तिवाचन है। मंत्र बोलना नहीं आने की स्थिति में अपनी भाषा में शुभ प्रार्थना करके पूजा शुरू करना चाहिए। ऊं शांति सुशान्ति: सर्वारिष्ट शान्ति भवतु।
पंचतत्व पूजा में भगवान सूर्य को आकाश तत्व, भगवान गणेश को जल तत्व, देवी दुर्गा को अग्नि तत्व, भगवान शिव को पृथ्वी तत्व और भगवान विष्णु को वायु तत्व माना गया है. धार्मिक ग्रंथों में जिक्र है कि पांच देवताओं की पूजा करने से सारे कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं
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